राजनीती.. मानसिकता से खिलवाड़..

राजनीती... एक ऐसा विषय है जिससे बुद्धिजीवी भी पीछा छुड़ाने की कोशिश करतें जरुर हैं लेकिन, वक़्त के साथ उन्हें भी जाने-अनजाने इस विषय में शामिल होना पड़ता है। 
वर्तमान के राजनितिक हालात वो दास्ताँ बयां कर रहें है जो लोकतंत्र के लिए किसी लिहाज़ से सही नही है। देश में चुनाव नजदीक हैं। नयी सरकार को लेकर गठजोड़ जारी हैं, और इन सबसे परे और आम लोगों की जानकरी से परे राजनितिक दलों का एक ऐसा गुट भी जो तैयारियां कर रहा है मुद्दों से भटकाने की।
लाखों करोंड़ों के भ्रस्टाचार, कई स्कैंडल, विदेशी मुद्दे, दुसरे राज्यों की घुस-पैठ, सीमा पर तैनात जवानों के बेदर्द क़त्ल, विपक्षियों के -काबिले माफ़ी करम और ऐसे ही सैकड़ों आम आदमी से जुड़े मुद्दों के बावजूद चुनावों के दौरान सिर्फ एक ही ऐसा मुद्दा है जिसे जेहन में रख कर मतदाता वोट डालता है.. वो है धर्म। धर्म निरपेक्षिता, साम्प्रदायिकता पर हमारे देश के नेता चाहे जितने ही अच्छे भाषण दें लेकिन उनकी इन बातों का कोई असर नही होता.. और ही दिखता है। 
वाजिब तौर पर हमारे देश में कोई ऐसी सरकार नही बनी जिसने भ्रस्टाचार के आरोपों का सामना नही किया.. ऐसे कई घोटालें है जिनमे वास्तविकता है। बावजूद इन सबकें सरकारें इन मुद्दों पर गिरती जरुर है लेकिन बनती नही।  इसके पीछे के कारणों पर कभी गौर नही किया गया। 
दरअसल हमारे देश के हर राष्ट्रिय दल का एक विशेष गुट है जो चुनावों में मुद्दों का निर्धारण करने का कम करता है। परदे के पीछे ये राजनितिक व्यक्ति ऐसी पटकथा लिखतें हैं जिससे चुनावों के परिणाम तक तय कियें जा सकें। ऐसे गुटों का काम है मतदाता की मानसिकता को छेड़ना। इन गुटों के सहारे ही देश में, राज्यों में किसी सांप्रदायिक मुद्दों को लेकर लहर चलती है। इसका असर पड़ता है चुनावों पर, परिणाम पर

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