विक्रम बाजपेयी
चाहे लाख आलोचनाएं हों पर 15 लाख के जुमले को छोड़ दें तो भाजपा अपने कहे को सच साबित करने की पूरी कोशिश कर रही है. 2 साल और सिर्फ दो साल का अंतर भाजपा बखुबी समझ रही है. आखिर दो साल ही तो बचे हैं केंद्र सरकार के पास.
इन दो साल में वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनाव की पूरी तैयारी के लिए भाजपा की नीति साफ है. वह पहले बड़े राज्यों में अपने प्रदर्शन को बरकरार रखने और मतदाताओं में अपनी पकड़ मजबूत रखने की कोशिशों में लगी है.
इसी बीच खबर आ रही है कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार करीब डेढ़ करोड़ किसानों के कर्जमाफी की तैयारी कर रही है. ये आंकड़ा काफी बड़ा है. वहां विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने इस संकल्प को कई बार दोहराया था. पीएम साहब ने तो यूपी की लगभग हर चुनावी सभा में किसानों का कर्ज उतारने का वादा किया था.
वादा था कि भाजपा की सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट की बैठक के बाद किसान कर्ज मुक्त हो जाएंगे. और जैसी खबर मिल रही है उसे देखते हुए 4 अप्रैल को ये फैसला शायद आ भी जाए. यूपी में लघु, सिमांत और छोटे किसानों का आंकड़ा मिलाए तो ये लगभग 5 करोड़ तक पहुंचता है.
लेकिन, यूपी में किसानों की कर्जमाफी दूसरे भाजपा शासित प्रदेशों की सरकार को महंगा पड़ सकता है. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ में किसानों का कर्ज ज्वलंत मुद्दा है. मध्यप्रदेश के हाल भी उतने बेहतर नहीं है. बुंदेलखंड का हिस्सा किसानों की बदहाली के लिए ही जाना जाने लगा है.
इन सभी प्रदेशों में भाजपा ही शासन कर रही है और लंबे वक्त से यहां के किसान अपनी बदहाली से संघर्ष करते हुए सरकार की ओर टकटकी लगाए हुए हैं. ऐसे में यूपी में किसानों की कर्जमाफी दूसरे राज्यों की सरकारों के लिए मुसीबत खड़ी करेगा.
सवाल ये भी होंगे कि क्यूं एक ही पार्टी की अलग अलग प्रदेशों की सत्ता एक दूसरे के बिल्कुल उलट फैसलें ले रहीं हैं ? और दूसरा सवाल छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेशों के लिये ये कि क्या यहां के किसानों को छोटे प्रदेश का हिस्सा होने के चलते कर्जमाफी नहीं मिल सकती...?
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