न बात सहिषुण्ता की है और न ही अ-सहिषुण्ता की

बिहार के नतीजे लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए ऊर्जादायक सिद्ध हो सकते हैं । न बात सहिषुण्ता की है और न ही अ-सहिषुण्ता की । आज लोकतंत्र विकास के एजेंडे पर ही वाद-विवाद चाहता है, ये तय होता है बिहार में महागठबंधन की जीत से । ये नतीजे मेरी नज़र में हर कोण से सकारात्मक ही हैं । सारी सत्ता किसी एक के हाथ में ही सौंप देना भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अव्यवस्थित भी कर सकता है ।
 बात भाजपा की हो तो फिर हाल-फ़िलहाल में केंद्र सरकार द्वारा की गई कुछ नियुक्तियां और पीएम मोदी की कमज़ोर पड़ती छवि सामने आती है । केंद्र के कुछ मंत्री और भाजपा के नेताओं की टिप्पणियाँ भी हार के कारणों में गिनी जा सकती हैं । और, राहुल गांधी । कांग्रेस के पास शायद पहली बार राहुल गांधी को लेकर जश्न मनाने का मौका आया है । नितीश के सहारे ही सही । लेकिन यह एक अच्छा अवसर है की कांग्रेस राहुल गांधी के साथ आगे बढ़ने की योजना बना सकती है । निसंदेह कुछ उपलब्धियां राहुल गांधी को भी मिली है बिहार के नतीजों में । देखना दिलचस्प होगा की कांग्रेस और राहुल गांधी अपनी उपलब्धियों को लेकर आगे की क्या रणनीति तय करते हैं और वो कितनी सार्थक होती है । बहरहाल, मैं एक आम व्यक्ति के दृष्टिकोण से बिहार के नतीजों की ही आशा कर सकता हूँ । ये नतीजे आवश्यक थे ताकि सत्ता का सभी स्तरों पर सदुपयोग हो । आलोचक और विरोधियों की उपस्थिति अच्छे कार्यों को बढ़ावा तो देती ही है, आपको पथ से भटकने भी नही देती । अंत में... जनता जनार्दन....|

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